Wednesday 6 August 2014

वह जो

वह जो मेरी कापी में
अजब गजब चित्र बना रहा
वह जो
मेरी होमवर्क की कापी कहीं छुपा रहा

वह मेरी तस्वीर पे जो
दाढी मूछें लगा रहा
वह जो मेरी लिखी डायरी
पढ के सब को सुना रहा

वह जो मेरी गुडिया की
चोटी कैंची से काट रहा
जितना ज्यादा चीख रही मैं
उतना ज्यादा चिढा रहा

मैंने तो बस गुल्ली उसकी
ताखे बीच छुपाई थी
और चुराकर कंचे उसके
यहां वहां छितराई थी

इतने से ही रूठ गया तो
अजब मुसीबत आई थी
छुप कर बैठ गया कोने में
मेरी हुई पिटाई थी…………

यादों में हर दिन के किस्से
छोटी बडी लडाई है
वह नटखट वह चंचल पाजी मेरा छोटा भाई है

रहूं कहीं मन मेरा उडकर
बचपन में खो जाता है
जब भी खुली हवा में निकलूं
मन मेरा उड जाता है…………।





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