Tuesday, 26 August 2014

हासिल

                                                          

ये पौधे फूल के

फोर लेन रास्तों के बीचोंबीच
लहलहाते ये सुकुमार पौधे
रंग बिरंगे फूलों से लदे
आंखों को सुकून देते हुये

फर्राटे से गुजरते वाहनों द्वारा उठते अंधड से
झकझोरे जाते बार बार
हवा के झोंकों से झर झर जाती कलियां
फिर भी मुस्कुराते हुए

कोई पूछे इनसे ये सो पाते हैं रात को
जब सोती है सारी दुनिया
वाहनों की चिल्ल पों
चौंकाती रहती है पल पल
रातें कटती हैं इनकी
यूं ही जागते हुए……

ये नहीं जानते
फूल पर आती हैं तितलियां
मंडराते हैं भौंरे
पूजा की थाल में सजती हैं कलियां
इन्हें नहीं पता

धूल से सनी रहती है देह इनकी
फिर भी खिले रहते हैं चेहरे
आते जाते राहगीरों को
हाथ हिलाकर
शुभ यात्रा कहते हुए…………


Tuesday, 12 August 2014

यादों की झांझरी

मेघ रूई के फाहों से
तिर रहे आकाश में
यहां वहां
हवा के पंखों पर सवार होकर
उतने से मेघ
बार बार छुपाने की कोशिश में लगे हैं चांद को
जो आज पूरे निखार पर है
रौशनी से लक दक
हंसता है
आंख मिचौली सी खेलता है
मेघ के साथ…………

यादों की झांझरी हटाकर
जाते हैं कुछ ऐसे ही पल
ख्यालों में
आधी रात का वक्त
आंगन में चारपाई डालकर लेटी हूं
देख रही मुग्ध भाव से
आसमानी नजारा


चांद ठीक सर पर है
रौशनी झर झर बरसती हुई
बस एक झीनी मसहरी का आवरण है
लयबद्ध सी सरिता उजले प्रकाश की
पूरे बदन पर बह रही
पंचतत्व का बना शरीर
जैसे विलीन हो रहा
उस चुंबकीय खिंचाव में
अद्भुत रोमांच से सिहर रहा रोम रोम

मुझे अब भी याद है
वह रात ज्यों की त्यों…………
अब वह आंगन है
आंगन में सोने की व्यवस्था
वह खुला खुला परिवेश है
चांद का वैसा दीदार ही नसीब
सब कुछ बदल गया
नहीं बदला तो
अपना मन

नहीं घटी तो
मन में हिलोरें लेती चाहना
बंधन खोलकर भाग जाना चाहती हूं
बांहें उठाये खिली चांदनी में
खुले आसमान के नीचे
बेफिक्र बेखौफ अनन्त की खोज में……………



फूल


छोटी सी बालकनी
गिनती के चार गमले
थोडे से फूल………
तोडना है तोडकर चढाना है
पूजा करने जाना है

हाथ बढते और रुकते हैं
एक समय था
बाग से चुन कर सुंदर सुंदर फूल
ले जाते थे लोग पूजा की थाल में
कथा है
शबरी ने मीठे खिलाने के चक्कर में
जूठे किये थे बेर सारे

कहां से लाऊं वैसी भक्ति
वैसा मन
फूलों को हाथ लगाती हूं तो
पौधा निरीह सा देखता लगता है
कैसे तोड लूं कलियों को
जिन्हें खिलना है अभी
छोटी सी जिन्दगी खुशी खुशी गुजारना है

रुक जाते हैं हाथ
किताबों में लिखा है जीवन है इनमें
सुख दुख महसूस करने की
शक्ति भी
क्योंकर दुखाऊं दिल इनका
मुझे क्या हक है
इन्हें कष्ट देने का

नहीं तोड पाती
लौट आती हूं
आंख मूंद प्रार्थना कर लूंगी
धन्यवाद भी कि
बचा लिया उसने मुझे
इन्हें टहनी से अलग करने से………