कब तू इतनी बडी हो गई
तब तू कितनी छोटी थी
घो-घो रानी जितनी सी
नरम मुलायम प्यारी सी
टुकुर टुकुर देखा करती थी
तेरी उन नजरों में मुझको
सारी दुनिया दिखती थी……
फ़िर घुटरुन तू चलना सीखी
हाथ पकडकर पांव छमककर
छुम छुम छुम पायल छनकाकर
तेरे नन्हे पाँवो में ,
नानी ने जो पहनाई थी…॥
जब तू दौड लगाना सीखी
मेरी ही गोदी में चढ्कर
मेरे गालों को छू छू कर
मेरा चेहरा घुमा घुमा कर
अपनी तोतली बोली में
कितना कुछ बतियाती थी
तेरी मीठी उन बातों में
क्या बतलाऊँ बिटिया रानी
सारे जहाँ की खुशियाँ मुझको
कैसे,कितनी मिल जाती थी…
फ़िर गुडियो की बारी आयी
मेरी नन्ही सी गुडिया
गुड्डे गुडियो में उलझ गई
पापा से चोटी गुथवाती
चाचा से लहंगे सिलवाती
दादी मोती मूंगे लेकर
तुझ सँग बौराई रहती थी…॥
दिन बीते और रैना बीती
मेरे सपने बडे हो चले
हर दिन देखा ये ही सपना
खूब पढे तू खूब बढे
दिन दूनी तेरी प्रज्ञा ज़ागे
और प्रतिभा निखर उठे
पढते लिखते खेल कूद में
तू जाने कब बडी हो गई
पूरे होते गए ख्वाब सब
तू ख्वाबो की लडी हो गई…
गुड्डे गुडिया खेल खिलौने
रह गए मेरी अलमारी में
शाम सबेरे यही पूछ्ते
कौन हमारा रूप सँवारे
क्या बोलूँ मैं क्या जबाब दूँ
मेरा अपना यही हाल है
वक्त का पँछी कब रुकता है
उड ज़ाता है पँख पसारे…
अब तू मेरा हाथ थाम कर
राह बाट चलना सिखलाती
और सहेली बनकर मेरी
दुख में सुख में गले लगाती
कभी मेरी अम्मा बनकर तू
बात बात में डाँट पिलाती
और कभी दादी माँ के
सौ नुस्खे मुझको बतलाती
कब तू सम्बल बनकर मेरे
ठीक बगल में खडी हो गई
छोटे पड गए सपने सारे
तू सपनों से बडी हो गई
कब तू इतनी बडी हो गई
कब तू इतनी बडी हो गई…।
amazing one..
ReplyDeleteexplains all what only a mother can feel...!!!