Saturday 30 July 2011

इतना ही करना


जोड लिया है
तार ह्रदय का
इससे ,उससे ,सब जग से
अब यह बंधन
मीठी मीठी
पीडा देता रहता है
कभी किसी से वादा कर लिया
अहले सुबह जगाने का
कभी किसी को
दिया वचन
रात थपक के सुलाने का

कभी किसी से
हमकदम
बनने का वादा कर डाला
हमसफ़र
बन गए किसी के
ज़ीवन अर्पण कर डाला
कभी किसी से कहा
चलो ्ना
हाथ पकड कर ह्म जाएं
बारिश की बूँदों में भीगे
और
समन्दर छू आएं

कभी किसी से कहा
चलो
हम बादल तक उडके जाएं
इन्द्रधनुष पर झूला झूलें
मौसम का
मल्हार सुनें

कभी किसी से पूछा
बोलो,
क्या तुम दोगे मेरा साथ
ले जाओगे दूर कहीं
बेधडक थाम के मेरा हाथ
कणक्ण में रहने वाले
 कैसे सुनते हो
सबकी बात
एक समय में अलग-अलग
लोगों का देते कैसे साथ

मुझको भी अपने इन वादों
के सँग जीना मरना है
हर दिन ,हर पल
एक नया,
वादा भी करते रहना है

सबका मन रख पाऊँ मैं
यह गुण मुझको भी दे देना
गाँठ पडने पाए मन के,
बँधन में इतना ही करना…………


1 comment:

  1. bus di, itna hi karna ki likhte jana.........really very nice...

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