वह स्नेह
बहा भीतर भीतर
कभी आंखों में कभी पलकों पर
रहा भिंगोता तन मन को
फिर जल बनकर
वह स्नेह बहा भीतर भीतर
इस स्नेह की अद्भुत है भाषा
अद्भुत है इसकी परिभाषा
जो रहे
लुटाते आप सदा अंजुरी भरकर
वह स्नेह
बहा भीतर भीतर
अब कितना
किसे बतायें हम
और कैसे
कहां छुपायें हम
जो आपसे
हमने पाया है दामन भरकर
वह स्नेह बहा भीतर भीतर
कभी आंखों में कभी पलकों पर
रहा छलकता रग रग में
फिर जल बनकर
वह स्नेह बहा भीतर भीतर…………
Badhiya.
ReplyDeleteBadhiya.
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