Tuesday 22 December 2015

अनुभूति

आंखें मून्द के सुनना तुम्हारा
मुझको
मेरी कविता को
एक अद्भुत एहसास से भर गया मुझे

मानों
पंच तत्व के इस शरीर का आकाश तत्व ही
भोर के गान की तरह
भर गया हो झंकार से

किरणों के म्रदुल गुन्जन और
पंछियों के कलरव से भरा भरा
पंखुडियों के खुलने की सरसराहट के
मधुर अंदाज से भर गया मुझे

मैंने महसूस किया अपनी ही कविता के
नरम स्पर्श को
शब्दों की मासूमियत और
स्वर के उतार चढाव को
सांसों की लय से एकाकार होते हुये
भीतर ही भीतर कुछ घुलने के
आभास से भर गया मुझे
तुम्हारा यूं आंखें मून्द कर
सुनना मुझको , मेरी कविता को……


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