Tuesday 22 December 2015

वह स्नेह बहा भीतर भीतर

वह स्नेह बहा भीतर भीतर
कभी आंखों में कभी पलकों पर
रहा भिंगोता तन मन को
फिर जल बनकर

वह स्नेह बहा भीतर भीतर

इस स्नेह की अद्भुत है भाषा
अद्भुत है इसकी परिभाषा
जो रहे लुटाते आप सदा अंजुरी भरकर

वह स्नेह बहा भीतर भीतर

अब कितना किसे बतायें हम
और कैसे कहां छुपायें हम
जो आपसे हमने पाया है दामन भरकर

वह स्नेह बहा भीतर भीतर
कभी आंखों में कभी पलकों पर
रहा छलकता रग रग में
फिर जल बनकर

वह स्नेह बहा भीतर भीतर…………



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