Tuesday 26 May 2015

दोस्ती

रख सकते हो
पर्वत की तरह अचल
नींव दोस्ती की तब करना
भर सकते हो उसमें
लहरों की तरह स्पंदन तब करना

नेमत है दोस्ती
इस जहान में
हर नाते रिश्तों से अलग
संबंधों से जुदा
कर सकते हो कद्र इसकी
बढकर सबसे तब करना

जरूरी नहीं नये रिश्ते
बनते ही चलें
पुराने निभा लें बडी बात है
दोस्ती दायित्व है
कोई खेल नहीं
संभल के पांव रख लें बडी बात है
डगमगायेंगे कदम भी
कहीं न कहीं
बढ के थाम सको बांहें तब करना

राह सहज हो हरदम
ये मुमकिन ही नहीं
कांटों से सामना भी होगा
कभी आंधी कभी झंझा
कभी उलझन भी आ खडी होगी
मिलेगी धूप जमाने की निगाहों की
कर सको छांव स्नेह की उसपर
तब करना

दोस्ती शब्द है तो इसके
मायने जानो
दोस्ती धर्म है तो इसको
शाश्वत मानो
रंग जीवन में भरती है
वो दोस्ती ही है
चाह जीने की बढाती है
वो दोस्ती ही है
कोई दुनिया में हो न हो तुम्हारा
किसी के हो सको तहेदिल से
तब करना……………





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