Tuesday 19 May 2015

सुबह की सैर

बहुत बहुत कठिन होता है
नींद भरी पलकों पर
पानी के छींटे मारकर जागना
अलसाये बदन को ढकेलकर
घर से बाहर निकलना
और
सुख भरे किसी मीठे सपने को
आधा अधूरा मन में बसाए
सुबह की सैर को जाना

लेकिन चंद पलों की मुश्किल
फिर सारा जग जैसे
इंतजार में पलकें बिछाए हो
सुबह की ताजी ठंढी हवा
गुनगुनाती सी
फूलों पत्तों को जगाती हुई जब
बदन को छूकर गुजरती है
मन प्राणों में
अजब ताजगी भर जाती है


महीन सुनहली किरणों का शनै: शनै:
आसमान से उतरना
कोमल गुलाबी कदम आहिस्ते से
नरम दूब पर रखना
कलियों का झक्क से खिल उठना
और हवा का सुग़ंधी ले उडना
सब कुछ मन को मोहने वाला होता है

कहीं किसी डाल पर पंछी बोल उठता है
तब नजर अपने आप
उधर उठ जाती है
हवा में घुली हुई मिठास
मन प्राणों को सींच कर दिन भर के लिए
ऊर्जा भर देती है

जी करता है पंख लगा उड चलूं
दूर वहां तक
जहां धरती आसमान गले लगते से दीख रहे

जहां किसी पर्वत की चोटी पर
सात घोडों का सारथी
सात रंगों की किरणों को
धरती पर बिखेरने में मगन है

जहां किसी पेड की फुनगी पर
झूला झूलती कोयल कुहू कुहू गा रही

दिशाओं में रंग और उमंग
बरसाती हुई भोर सुहानी
प्रभाती गा गाकर बुलाती है
हमें जगाती है
चलो उपवन में घूम आएं
कर आएं कुछ देर

सुबह की सैर……………।

No comments:

Post a Comment