Sunday 10 June 2012

चलो न


चलो न
आज की रात
सितारों का जश्न देखें

सुना है रात जब गहरा जाती है
धरती अपनी धुरी पर
एक चक्कर पूरे करने ही वाली होती है
सितारों भरा आकाश
उडेल देता है अपनी जगमगाहट
झील के पानी में
बिखेर देता है सब सितारों को
धीरे से……
उनींदी कुमुदिनियां
जल कुंभियां
और चमचमाता चांद भी
शामिल हो जाता है
जश्न में…
जल क्रीडा करते हैं सभी
स्वच्छ जल में नहाकर
सितारे
और भी झिलमिल हो उठते हैं

जैसे
निधि वन की
तुलसी का हर पौधा
रात के गहराते ही
गोपियों की काया में तब्दील हो जाता है
और प्रेम का अजर अमर इतिहास
दुहराता है
सुना है हर गोपी के साथ कन्हैया
रास रचाता है....

चलो न !
समय की धुन पर अनवरत गूंजती
प्रेम की स्वर लहरियों में
पल दो पल को अपना सुध बुध
भूल जाएं
बिसरा कर दुनिया और दुनियादारी
की रस्में सभी
आत्मा के सुख में तनिक खो जाएं……

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