Tuesday 28 July 2015

खुशनसीब हूं मैं

किसी की नज्म थी
लिखने वाले ने लिखा था
उम्र बीत रही
कोई ऐसा मिला
जिसे बस याद करूं तो जाए
मुस्कान लबों पर

अपनी तरफ निहारने लगी मैं
दिल ने कहा
बहुत खुशनसीब हूं
हैं मेरी जिन्दगी की किताब में
कुछ पन्ने उस नाम के
जिन्हें पलट कर देखूं तो
खेल उठती है मुस्कान लबों पर

जिसे जब चाहे पुकार सकूं
जहां चाहे हाथ थामकर ले जाऊं
संग बैठकर बोलूं बतियाऊं
फुर्सत में
बस याद भी करूं तो
आ जाती है मुस्कान लबों पर

तन्हाईयां हों कि मेले हों
जमाने के
भींगती स्नेह की बारिश में रहती हूं
मिलती है धूप
प्यार की भी हरदम
अनबूझ नशे में खोई रहती हूं

दिल अपना खोलकर
रख देती हूं  जिसके आगे
सुन सकती हूं जिसको ताउम्र मैं

है ऐसी परछाईं मेरी काया की
संग लिपट के मुझसे
जो रहा करती है
ऐसा चेहरा
जो दीख जाता है
आईना जब भी निहार लेती हूं

बहुत खुशनसीब हूं मैं कि नज्म मेरी
उम्र के रस्ते से
खुशियों के फूल चुनती है

रोपती है कुछ बिरवे हरेक पडाव पर
हंसी बिखेरती चलती है
हां खुशनसीब हूं मैं



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