Sunday 12 April 2015

जब जब दीप जलाया

जब जब दीप जलाया
तेरी यादों के
आ गये कुछ गुजरे
सुहाने लम्हे
इन लम्हों में ढूंढा मैंने फिर तुमको
उतने ही शिद्दत से और
अपनापे से…………

बार बार जीने की तमन्ना रखती हूं
बार बार जीती हूं
मैं उन लम्हों को
हर लम्हा था प्यार के रंगों में डूबा
हर लम्हा था हाथ थाम
एक दूजे के…………

सांझ आयेगी जब उतनी ही
सज धज के
रात आयेगी जब जब लेकर
चंदा को
जब बरसेगी मधुर चांदनी
दसो दिशा
ढूंढेगा मन फिर वैसी बेताबी से…

अनजानी गलियों में
और अनजान डगर  
बेमतलब बेखौफ विचरना
इधर उधर……
फिर मिलना अरमानों में रंगत भरने
मैं छेडूं धुन कोई
तब संगत करने…

गले में बांहें डाल के
फिर मैं बैठूंगी
ले जाना तुम मुझे उधर
जी जिधर कहे

जब जब दीप जलेंगे
तेरी यादों के
आ जायेंगे ये सुहाने लम्हे………




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