Monday 3 September 2012

बचपन की अमीरी




बूंदें वही हैं
बारिश वही है
भीगी हवा मे
मस्ती वही है..
सपनों की अद्भुत
कशिश लेके तिरती
पानी में कागज की
कश्ती भी वही है..

जो सब कुछ वही है
तो फिर खो गयी क्यों 
बचपन की 
अल्हड़
नजाकत , अमीरी...
.
चाहे हों हासिल
महलें दुमहले
सपनों की अपनी अलग
अहमियत है...
हंसने किलकने की
जी भर फुदकने की
ताउम्र कोशिश
क्यों ना करें हम..

रहे याद हरदम
हैं जब तक ये सांसें
सलामत रहें वो
नजाकत , अमीरी...

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