Tuesday 21 August 2012

बूंद बनाकर रखना


धारा मुझको नहीं बनाना
अलग थलग हो बहूं...
अपने तट की ,तटबंधों की
सीमा में ही रहूं.......

बूंद बनाकर रखना प्रभुवर
स्वार्थ विमुख रह पाऊं
सागर में मिल जाऊं
तो मैं भी सागर कहलाऊं....

हरी दूब पर रहूं कभी
बादल संग लहराउं
गिरुं अगर सीपी के मुख में
तो मोती बन जाऊं.....

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