चलो भींग कर आयें
क्या हुआ जो
बचपन छूट गया
देखो मौसम कैसे बुला रहा
टप टप टुपुर टुपुर…
नन्हीं महीन बूंदें फूल पत्तों को नहला रहीं
बडी बूंदें छप्पर से कूद कूद कर
नीचे आ रहीं
देखो गली में कितनी
छोटी छोटी नदियां बह रहीं
चलो कागज की नाव बनायें
चलो न
भींग कर आयें
भूल गये
दो हाथों की अंजुली में
छप्पर से गिरते पानी को
घंटों
रोके रखना
क्या
भूल गये
गड्ढों नालों में हाथ पकडकर
छप छप चलना
याद करो वो मस्त महीने
सावन के बरसातों के
क्या हुआ जो
बचपन छूट गया
मन में अब भी कुछ अल्हडता
जीती है सांसें लेती है
कुछ चंचलता
कुछ नटखटपन
अब भी बाकी है जेहन में
चलो बीर बहूटी ढूंढ के लायें
चलो न
भींग कर आयें…………॥
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