Thursday, 31 July 2014

चलो बारिश में भींगें

चलो भींग कर आयें
क्या हुआ जो
बचपन छूट गया
देखो मौसम कैसे बुला रहा
टप टप टुपुर टुपुर
नन्हीं महीन बूंदें फूल पत्तों को नहला रहीं
बडी बूंदें छप्पर से कूद कूद कर
नीचे रहीं
देखो गली में कितनी
छोटी छोटी नदियां बह रहीं
चलो कागज की नाव बनायें
चलो न भींग कर आयें

भूल गये
दो हाथों की अंजुली में 
छप्पर से गिरते पानी को
घंटों रोके रखना
क्या भूल गये
गड्ढों नालों में हाथ पकडकर
छप छप चलना

याद करो वो मस्त महीने
सावन के बरसातों के

क्या हुआ जो
बचपन छूट गया
मन में अब भी कुछ अल्हडता
जीती है सांसें लेती है
कुछ चंचलता
कुछ नटखटपन
अब भी बाकी है जेहन में
चलो बीर बहूटी ढूंढ के लायें

चलो न भींग कर आयें…………

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