अद्भुत
नजारा है
कुछ
ज्यादा ही चमकीला
कुछ
ज्यादा ही बडा चांद
है आसमान
में
गुरू
पूर्णिमा की रात है
अपूर्व
सुन्दरी तीस्ता
इठलाती
हुई बह रही
रौशनी
में नहाकर
समूची
धारा सुनहरी हो रही है
जब आधी रात हो चली
गगन से
धीरे
धीरे फिसलता हुआ
चांद नदी
के पास आया
बहुत
पास
मानों
जल के दर्पण में
मुख
देखना चाह रहा हो
जब सारी कायनात सो गयी
चुपके
से कोई बात
कहना
चाह रहा हो
धीरे से
चंदनी की बांहें फैलाकर
ज्यों
ही
छुआ
उसने
जाने
नदी ने क्या कहा उसके कानों में
खिलखिलाता
हुआ वापस लौट चला
सबेरे
दुनिया वालों ने
दूर आसमान में
उसे मुस्कुराते हुए देखा
कुछ खास बात थी आज
चांद की आभा में
चंचला
तीस्ता भी बहती है
आज कुछ शरमाई सी
जाने
क्या घुल गया
आज
उसकी
जलधारा में…………
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