कैसे कह सकते हो
वह सब समझ गए हो तुम
जो मैंने कहा
या कहना चाहा
कहने की कोशिश में पलकें
उठाती गिराती रही
सांसें बेतरतीब हुईं
बोल जो फूटे नहीं मुख से
वह भी तो सुनना था
कैसे कह सकते हो
सुन लिया तुमने वह सब कुछ
जो भीतर ही घुमडते रहे
शब्दों की खोज में
कुछ शब्द जो अस्फुट से थे
जुबां पर आये ही नहीं
उनके मायने
और भी बहुत कुछ
जो पिरोये हुए थे
उन शब्दों के आर पार
कैसे कह सकते हो जान लिया तुमने
कभी देखूं नजर भरकर
तभी जानूंगी
एक बार फिर आना……………॥
Superb feeling.Get all your poetry published.
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