वह जो मेरी कापी में
अजब गजब चित्र बना रहा
वह जो
मेरी होमवर्क की कापी कहीं छुपा रहा
वह मेरी तस्वीर पे जो
दाढी मूछें लगा रहा
वह जो मेरी लिखी डायरी
पढ के सब को सुना रहा
वह जो मेरी गुडिया की
चोटी कैंची से काट रहा
जितना ज्यादा चीख रही मैं
उतना ज्यादा चिढा रहा
मैंने
तो बस गुल्ली उसकी
ताखे
बीच छुपाई थी
और
चुराकर कंचे उसके
यहां
वहां छितराई थी
इतने
से ही रूठ गया तो
अजब
मुसीबत आई थी
छुप
कर बैठ गया कोने में
मेरी
हुई पिटाई थी…………
यादों में हर दिन के किस्से
छोटी बडी लडाई है
वह नटखट वह चंचल पाजी मेरा छोटा भाई है
रहूं कहीं मन मेरा उडकर
बचपन में खो जाता है
जब भी खुली हवा में निकलूं
मन मेरा उड जाता है…………।
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