Tuesday, 26 August 2014

ये पौधे फूल के

फोर लेन रास्तों के बीचोंबीच
लहलहाते ये सुकुमार पौधे
रंग बिरंगे फूलों से लदे
आंखों को सुकून देते हुये

फर्राटे से गुजरते वाहनों द्वारा उठते अंधड से
झकझोरे जाते बार बार
हवा के झोंकों से झर झर जाती कलियां
फिर भी मुस्कुराते हुए

कोई पूछे इनसे ये सो पाते हैं रात को
जब सोती है सारी दुनिया
वाहनों की चिल्ल पों
चौंकाती रहती है पल पल
रातें कटती हैं इनकी
यूं ही जागते हुए……

ये नहीं जानते
फूल पर आती हैं तितलियां
मंडराते हैं भौंरे
पूजा की थाल में सजती हैं कलियां
इन्हें नहीं पता

धूल से सनी रहती है देह इनकी
फिर भी खिले रहते हैं चेहरे
आते जाते राहगीरों को
हाथ हिलाकर
शुभ यात्रा कहते हुए…………


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