ओ बिटिया
ओ सोनपरी मेरी
जब तू छोटी सी थी
तुझे गोद में लिए लिए घूमती थी मैं
तुम्हारी टुकुर टुकुर ताकती निगाहें
आश्चर्य से भरी निहारती रहती थी
एक एक चीज को
जैसे जान लेना चाहती हो सब कुछ
अभी के अभी…
तुम्हें एक छोटा कौर खिलाने को
कितनी बातें बनाती थी मैं
कितना सुख पाती थी
तुम्हारे लिये वह खिलौना लेकर
जिसे तुम लेना चाहती थी
तुम बडी हुई
तुम्हारी चाह भी विकसित हुई होगी
सोचती हूं
क्या अब भी तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर पाऊंगी
न कर पाई तो
तुमसे ज्यादा दुख मुझे होगा
वक्त कभी उलझन में न डाले
मेरी सोनपरी सी बेटी
तेरे हौसलों को पर लगें
तेरी आकांक्षाओं की उडान लम्बी हो
तुझे वह सब हासिल जो
जो तू करना चाहे
तेरे मन को मैंने नरम ढालने की कोशिश की है
मीठे बोल बोलना
आगे बढकर मदद करना सबकी
तुझे हर खुशी मिलेगी
दो हाथों के लेन देन का नाम ही है जिन्दगी……………
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