सुना है
पढ लेते हो तुम
बंद लिफाफे के मजमून भी
चकित हूं सोचकर
कैसे पढ लेते हो
यह तो वैसी ही बात हुई
कि जानता हो कोई
आज जिन्दगी क्या सवाल पूछेगी
एक
बंद लिफाफे सा मन है मेरा भी
भीतर
कितने कितने स्वर
कितने
कितने शब्द
कितनी
ही
अव्यक्त
अभिव्यक्तियां और
मुखर
होने को बेताब भावनायें हैं
पढ
सकते हो क्या
जब
तक आंखें कुछ बोल न दें
जुबां
कुछ बयां न करे
या
रंग चेहरे का
समूचा
उड कर
या
फिर गहरा कर
कुछ
राज खोल न दें…?
सुना
है पढ लेते हो तुम
मजमून
बंद लिफाफे के
पढ
लो न इसे भी……………।
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