आ गयी होती मैं कबके
दौडी दौडी
सब कुछ छोड के
हर बंधन तोड के
एक बार अगर
आवाज दी होती तुमने
करती रही इंतजार
अब पुकारो तब पुकारो
नहीं मालूम
क्या सोचते विचारते रहे
कौन सी उलझन में भरमाये रहे
पहर बीते दिवस बीते
आते जाते रहे मौसम
कभी मेघ कभी बिजली
कभी पवन के हाथ
भेजा मैंने संदेशा अनेकों बार
न सुना कभी तुमने
न समझा हाल ही दिल का
न आये तुम
न अपना कुछ हाल ही भेजा
बीत गये
युग कितने
गुजरे
कई कई जनम
मैं सब कुछ छोड के आती
हर बंधन तोड के आती
अगर एक बार
आवाज दी होती तुमने……………॥
KAMAAAAAAL KA....
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