मुडे तुडे कागज का यह टुकडा
तहाये हुये कपडों के नीचे से
छुपकर झांकता हुआ
जैसे आवाज देकर
पुकारता रहा कब से
आज निगाह पडी
धीरे से बाहर निकाल कर देखा
कभी सहेज कर रखा होगा मैंने
आज यह मुड मुडा कर भी
सहेजे हुये है कितनी
मीठी मधुर यादों को
दिल में कुछ उमडता घुमडता हुआ
महसूस हुआ
आंखें धुंधला सी गयीं
उंगली के पोरों से छूकर लगा
छू लिया हो बीते लम्हों को
हर शब्द जैसे बातें कर रहे हों
प्यार से मनुहार से
लाड दुलार से
और इन शब्दों के आर पार भी
लिखी हुई हैं हजारों बातें
अब भी पढ सकती हूं
ज्यों की त्यों
दावे से कह सकती हूं
भावनाओं
और उसके स्पंदन को भी
बरसों बरस सहेज कर रखने की
सामर्थ्य
और किसी में
इतनी
नहीं हो सकती
जितनी
इस कागज के टुकडे में है
गुजरे
हुए समय को
महसूस
करा देना
दिल
में उतरकर हिलोरें जगा देना
यह
सब तो बस खत ही
कर
सकता है
चाहे
वह किसी का हो………॥
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