एक दीपक द्वार पर
राहगीरों के लिए
एक घर में रख लिया
दर दीवारों के लिए
एक पूजा ताख पर
कि देव जागते रहें
एक है मुंडेर पर कि
रौशनी झरती रहे
एक रखा कूप पर
एक तुलसी सामने
एक आंगन बीच में
कि कहीं अंधेरा ना रहे…
कौन सा दीपक जलाऊं
मन का
अंधियारा हरे
कम कभी न रौशनी हो
उम्र भर जलता रहे……
न बुझा पाए हवा
न आंधियां न बारिशें
न निराशा ही कभी
इस लौ की रौशनी हरे……
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