कितनी चंचल है
रुकती नहीं कहीं
इत उत भागती फ़िरती
बाल सुलभ उत्सुकता लिये
पूछती रहती सवालों पर सवाल
बारिश की पहली बूंद से
पूछती
कहां से लाई महक सोंधी
खिलती कलियों से पूछती
कहां से पाई सुगंध इतनी
छूती झरनों की उड्ती जलराशि को
निहारती मुग्ध होकर
प्रभात की लाली को
नव कोंपलों को चूमती
फ़ुनगियों पर झूलती
झूमती संग संग पुरवाई के
चहकती छांव में अमराई के
थामकर बांहों से मैंने
एक दिन रोका
डालकर आंखों में आंखें
एक दिन पूछा
बता
दे कौन है तू
इतनी
चंचल सुकुमारी
हंसकर
गले में झूलकर
धीरे से बोली
मैं हूं कविता तुम्हारी……।
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