शोर गुल हल्ला गुल्ला
आंगन में कुहराम मचा था
आसमान में चांद था पूरा
उसे उतार कर लाना था
खेल खिलौनों से मन ऊबा
भालू चीते सब नकली
इस प्यारे चंदा संग मिलकर
खेल नया कोई रचना था
सीढी आई रस्सी आई
पर चांद तक पहुंच न पाई
जब सबके सब हुए निराश
तब पहुंचे दादी के पास
धत ! इतनी छोटी सी बात
चलो करूं मैं एक प्रयास
पीतल की थाली मंगवाया
पानी से उसको भरवाया
बिन सीढी के ,बिन रस्सी के
चुटकी में ही बन गई बात
पानी में उतरे सब तारे
और थाली में उतरा चांद…।
wah ,bahut khub ,nice
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