वह यतीम लड़की
कभी नहीं रोई...
तब भी नहीं ,जब दंगाईयों ने
धावा बोला था
और उस आठ साल की
नन्हीं सी जान को
उसके अब्बा ने दीवार से बाहर
फेंक कर कहा...जा तेरी परवरिश
अल्लाह करेगा.....
भौंचक सी वह..
जब पलटकर देखा उसने
धुआँ ही धुआँ
कहाँ देख पाई घरवालों को दोबारा...
फिर यतीमखाने में पली
दुनिया वालों ने उसका
घर बसा दिया
गोद भी भरी...
दिन खुशियों भरे तब देखे उसने
पर जब अपनी अपनी बीबियों को
लेकर दोनों कलेजे के टुकड़े
परदेश गए
और पति.ने भी साथ छोड़ा
तो दिल टूटा ,
आँसू फिर भी नहीं आए
वह नहीं रोई...
एक बार फिर अकेली हो गई
फिर कलह मची
दंगे फसाद हुए..
सबने एकस्वर में कहा
इतने बड़े घर में
एक अकेली औरत का क्या काम ?
बड़े दयालु थे वे
धक्का नहीं दिया
पोटली भी समेटने दी..
और वह धीरे धीरे चलती
पुन: यतीमखाने आ गई
बच्चों की याद तो आई
बहुत कचका कलेजा
पर रोई नहीं वह..
.
और आखिरी वक्त भी आ ही पहुंचा
एक एक कर याद आते हैं सारे
अब्बा भी...
अम्मी भी .......
अपने जाए और पराए भी
जिस जिसने उसे सहारा दिया
लेकिन एक चेहरा
आज बहुत याद आया
ठीक से देखा भी नहीं था
बस आवाज सुनी थी.
दीवार के पार पड़ी देख
जिसने उठाया था
कलेजे से सटाया और
तेज तेज कदमों से चलता हुआ
कहता जाता था.
रो मत मेरी बच्ची,रो मत.
वह खुद तो हिचकियों से
रोता था
और उसे रोने से मना कर रहा था
उसी ने यतीमखाने भी
पहुँचाया था.
साथ ही कहता गया
रोना नहीं-
आँसू कमजोर करते हैं
तू औरत है
शक्ति का अवतार है तू
एक दिन सहारा बनेगी बेसहारों का
उसकी बात ने मन में ऐसी
पैठ बनाई
वह कभी रो नहीं पाई..
पर आज वह अजनबी
इतना याद आया
कि आँसू रोक नहीं पाई
वह जार-जार रोई.....।
Amazing :)
ReplyDeletethe poem from the core of heart.
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