यादों के सिरे थामकर
सम्मुख है वर्त्तमान
आंखों में आंखें डालकर
पूछता है हाल....
झकझोरता है मन को
दिल को खंगालता
कर्तव्यों की बाबत है
पूछता सवाल....
वो बाग बगीचे
लड़कपन जहां बीता
वो आंगन वो देहरी
वो गली और दरीचा
क्या कर रहे हैं हम अभी
उन सबकी देखभाल.......?
वो बांहों के झूले, मगन
जिनमें था बालपन
जिन आंखों के सपनों में
पलता रहा बचपन
क्या हो रही है उन सभी
रिश्तों की साज संभाल...?
वो संगी सखा ,जो थे
कभी जान से प्यारे
बांहों में बाहें डाल
मधुर घड़ियां गुजारे
क्या पूछ लेते हैं कभी
उनका भी हाल चाल......?
यादों के सिरे थामकर........
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