Sunday, 29 April 2012

छोटी सी याद



मेरे खयालों की निर्बाध नदी
बहती रहती
सिकुड्ती सिमटती
कहीं कहीं बेखौफ पसरती…
पर कभी कभी
जैसे हाथ देकर रोक देती हैं
कुछ यादें…

एक छोटा सा वाकया
अक्सर याद आता है
और रोकता है
राह ……
आधी रात का वक्त
मैंने गुजारिश की
कुछ सुनाओ ना !
अभी ?
तुमने अचरज से भरकर पूछा
फिर तुरंत गुनगुनाने लगे
अच्छा सा गीत कोई
कितने मीठे स्वर थे तुम्हारे
मेरे कानों से होकर
आत्मा में प्रवेश करने लगे
मैं मुग्ध सी सुन रही थी

बात गीत और उसके स्वर की नहीं
बात, मेरी बात का मान रखने की थी
मैं पिघली जा रही थी
उन स्वरों का हाथ थाम
तुममें समाती जा रही थी
कि तभी…
गली का कुत्ता भौंक उठा
तुम खिलखिलाने लगे
बच्चों सी निर्मल हंसी
देखो ,कुत्ते भी हंस रहे
खैरियत है गली में गधे नहीं…

यह छोटी सी याद
अक्सर बेचैन करती है मुझे
उसी वक्त
रात के उसी प्रहर…
सन्नाटा गहरी सांसें भरता रहता है
और मेरे ख्यालों की नदी
अचानक सहमकर
रुक जाती है
मुडकर देखने लगती है ॥




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