भरी महफिल
मैंने अपनी नज्म सुनाई
निगाहें नीची ही रहीं
नज्म अपनी थी
अपने रगों से होकर गुजरी हुई…
अभी आधा ही
सुनाया था
तेरी पलकों ने दगा दे दिया
संभाल नहीं पाए
दो नन्ही बूंदों को भी…
बाकी की नज्म
महफिल ने खुद ब खुद
सुन समझ लिया…
आह !
ये तूने क्या किया
बरसों मैंने छुपाया
सात पर्दों में दिल के
आज चंद पलों में ही
उजागर कर दिया ?
हमराज मेरे
तुमने ऐसा क्यों किया ??
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