तिल तिल ऊंची होती हुई बेटी
पास आती है
गले से लिपट कर मानों कहती है
रोक लो न मां
मेरे बचपन को
कि बना रहे मेरा ठुनकना
बात बात पर जिद्द करना , मचलना
जाने मत दो मेरे अल्हडपन को
कि जानना समझना नहीं है मुझे
दुनिया को, दुनियादारी को
जाना नहीं हैं मुझे
तुमसे दूर कहीं भी
किसी और देश कोई और गांव
छुपकर सुनती है बातें
व्याहे जाने की
और धमक कर आ खडी होती है सामने
मत करो न मां ऐसी बातें
अभी तो सुलझते नहीं मुझसे
मेरे केश ही
कैसे सुलझाऊंगी
जीवन की उलझनें
अभी तो सीखा भी नहीं संभल कर
पांव रखना जमीन पर
कैसे संभालूंगी बडी बडी जिम्मेदारियां मां
मां क्या कहे
छुपा कर भर भर आती आंख को
पोंछकर उंगली के पोर से
टपकते लोर को
मुस्कुराती है
दुलारकर समझाती है
मेरी बच्ची
यही है रीत दुनिया की…………………॥
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