Saturday, 18 October 2014

बेटी कहती है

तिल तिल ऊंची होती हुई बेटी
पास आती है
गले से लिपट कर मानों कहती है
रोक लो मां
मेरे बचपन को
कि बना रहे मेरा ठुनकना
बात बात पर जिद्द करना , मचलना
जाने मत दो मेरे अल्हडपन को
कि जानना समझना नहीं है मुझे
दुनिया को, दुनियादारी को

जाना नहीं हैं मुझे
तुमसे दूर कहीं भी
किसी और देश कोई और गांव

छुपकर सुनती है बातें
व्याहे जाने की
और धमक कर खडी होती है सामने
मत करो मां ऐसी बातें
अभी तो सुलझते नहीं मुझसे
मेरे केश ही
कैसे सुलझाऊंगी
जीवन की उलझनें
अभी तो सीखा भी नहीं संभल कर
पांव रखना जमीन पर
कैसे संभालूंगी बडी बडी जिम्मेदारियां मां

मां क्या कहे
छुपा कर भर भर आती आंख को
पोंछकर उंगली के पोर से
टपकते लोर को
मुस्कुराती है
दुलारकर समझाती है
मेरी बच्ची

यही है रीत दुनिया की…………………

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