Tuesday 9 September 2014

हाथी घोडा पालकी

छुटपन की बात याद है
चार छोटे बच्चे मिल जाते थे
आगे खडे दो के कंधों पर
पीछे वाले दो अपने हाथ रखकर
पालकी बनाते थे

मैं सबसे छोटी उनपर
शान से बैठती
मन बल्लियों उछलता
पालकी धीरे धीरे चलती

एक दिन समूह में
एक बडी दीदी आईं
मैं ज्यों ही पालकी में बैठी
उनने मुझे घूंघट ओढाईं
सब ताली पीट कर हंस पडे
मैं अबोध पता नहीं क्यों
उस दिन शरमाई……

वह पालकी
लगभग वैसी ही पालकी
जब मुझे लेकर बाबुल के घर से चली
भीतर छुपी बैठी वह नन्ही
बुक्का फाडकर रोई
पल भर में छूट गया
अम्मा का दामन
बाबा का आंगण
उंगली छोटे भाई की……

दूर बहुत नहीं जाता कोई
पर निगाहों से दूर होना
कोई छोटी बात तो नहीं

ठुनककर गले लगने वाली आदत
छूट जाती है
बात बेबात रूठ जाने वाली बात
भूल जाती है
प्यार सबको करना है
सीख कर आने वाली को
जो साट ले कलेजे से
वो निगाहें बिछड जाती हैं

घोडे ने चुस्ती और फूर्ति सिखाई
हाथी ने धीर
गंभीर होना सिखाया
उस फूलों सजी निगोडी पालकी ने
प्यार से बिठलाकर
कहां ला पहुंचाया

बीते दिन सपने हो गये
दूर बहुत दूर सब अपने हो गए
दर्पण देखूं तो
आंखों का पानी दीख जाता है

बात बेबात घर अपना याद आता है
मन में धरोहर है पीहर के प्यार की

हाथी घोडा पालकी………………………

पलक झपकाए बिन

किरणों की नदी
बादल की तरी
उसमें चांद सवार

आप ही नइया
आप ही मांझी
आप ही है पतवार

मनमौजी मनचला मुसाफिर
चला छितिज के पार

यह सुंदर
यह द्रश्य मनोहर
देख रहा संसार

पलक झपकाए बिन
पलक झपकाए बिन………………
रात सुहानी
बात सुहानी
शीतल मंद बयार

झिर झिर झरता
रस अंबर से
ज्यों अम्रृत की धार

एक तो चंदा यूं ही सुंदर
उसपर मेघ सवार

नयन बावरे
मगन निहारे
ऊपर बारंबार

पलक झपकाए बिन
पलक झपकाए बिन………