Monday 30 April 2012

प्यार के रंग


प्यार के रंग हैं
धरा पर बिखरे बिखरे
हरेक रंग के मिजाज भी जुदा-से हैं
कोई हल्का कोई गहरा है
चलो नजदीक से इन्हें हम देख आएँ
ये जो रंग है सुरमई
सदाबहार का
यही करता इशारे प्यार के इजहार का
ये शोख है और है नजाकत वाला
चलो शिद्दत से इसे आज हम
महसूस आएँ....

ये जो रंग है खुशरंग
यूँ महका महका
इसी से रहता है मन अपना भी
बहका बहका
ये मदमस्त है अद्भुत अदाएं हैं इसकी
चलो कि पास से इसको आज छू आएँ...

ये रंग सभी
उगते हैं क्षितिज पर से ही
छा जाते हैं फिर दिग दिगंतों में आके...
है अपना भी सब कुछ
इसी जहान का
तो असर इनका रहेगा होकरके ही
चाहे कत्थई हो चाहे कि हो सिन्दूरी
तासीर है हर रंग की जीवन से भरी
हर रंग सिखाता है हमको
बस खुश रहना
जी भर के जीना और सबको जीने देना........

ये तारे


उस साँझ चंचल पानी में
चांद के चेहरे की छाया
और उसकी चांदी सी झिलमिलाती
चांदनी निहारते हुए
मन खिल उठा....
दुधिया रौशनी धरती आकाश
तक पसरी हुई
मानों रुपहली चादर ओढ़कर
सारी सृष्टि ही सो रही हो....

निगाहें ऊपर उठाई तो
साफ स्वच्छ नील गगन में
एक पूरा चांद और
उसके ठीक चिबुक के पास
एक नन्हा चमकीला तारा....
मुस्कुराता हुआ...
कह नहीं सकती मुझे
क्या ज्यादा अच्छा लगा..
पूनम का वह चंद्रमा
शुभ्र नीला आसमान या
वह सुकुमार सा तारा ,
सब मोहक सब लुभावने..
                   

प्रत्येक शाम मैं रेलिंग के पास
खड़ी हो अपलक निहारती
बालकनी से आसमान का जितना
हिस्सा दिखाई देता
तारों से भरा ....
टिमटिमाते तारों से ,
कभी तो लगता सब के सब

कितने पास हैँ
बिल्कुल हाथ की पहुंच के भीतर
कभी बहुत बहुत दूर लगते...
एक अदृश्य जुड़ाव सा बन आया
हो भी क्यों न..!
क्षिति ,गगन,पवन
जल और अग्नि
इन्हीं पंचतत्वों से तो
हमारा शरीर भी बना है
संबंध तो होगा ही...
                
सूर्य ,चंद्र , ग्रह, सितारे
सबसे हमारा जन्म जन्मांतर का
नाता है...
जल पवन और अग्नि
तो हमारे शरीर का
हिस्सा ही हैं.....
कहते हैं देव दानव युद्ध में
जब समुद्र मंथन हुआ
माँ लक्ष्मी के साथ
चंद्रमा भी निकले समुद्र से
तभी से इन्हें हमने मामा
कहकर पुकारना शुरु किया
अब इसे क्या कहें.?
जमीनी इंसानों का
आसमानी फरिश्तों से
कौन सा रिश्ता है..?
    
              
इन तारों के साथ
कितनी ही कहानियाँ,
किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं
अनगिनत तारों का एक
समूह जिसे आकाश गंगा कहते हैं
कहते हैं राक्षसों के सरगना
रावण ने
आकाश मार्ग बनाना चाहा था
स्वर्ग तक पहुंचने का....
ये सप्तऋषि मंडल ,
ये ध्रुव तारा ,
नन्हा तपस्वी
माता के कहने पर
पिता की गोद तलाशता
विष्णु लोक ही जा पहुँचा..

रात के अंधेरे में
मोतियों भरी थाल
जगमग करती...
असंख्य तारे असंख्य कहानियां
भोर को दिखाई देने वाला तारा
समय का सूचक
दिशा का पता बताने वाला तारा
कौन सी पूरब दिशा है
कौन सी उत्तर...
अंधेरी राह के राही का
मार्गदर्शक.,सहारा
वो कहते हैं न...
रहबर कोई नक्षत्र हो
साथी कोई मन का
कट जाए
हँसते हँसते रस्ता जीवन का.....


तीन दिन


ढेर से बादल थे आसमान में
चाँद उनमें लुकता छिपता
चला जा रहा था
जब निकलता
खिलखिलाता हुआ सा लगता
बहुत ही चमकीला
सौंदर्य से भरा
तुम मेरे पास थे
हम घंटों निहारते रहे
और डूबते उतराते रहे
अनगिनत सुनहरे ख्वाबों के
जवार भाटों में....
ऐसा होता है अक्सर
जब तुम साथ होते हो
तो हर नजारा
अत्यधिक खूबसूरत लगता
सब कुछ सुंदर ,
मन भावन
और जब अकेली होती हूं
वही सब कुछ देखने का भी
मन नहीं होता
दीखता भी नहीं
कहाँ तो चांद
कौन सा चांद
कैसी खुशनुमा रात
और कैसी तो चांदनी
सब बेमानी
खोया खोया सा मन
और धुंधले नजारे...
तुमने कहा था पहुंचते ही
खत लिखोगे....
तीन दिन लगते हैं यहां तक
खत के पहुंचने में ,
और पहले ही दिन से मैंने
शुरु कर दिया है इंतजार
एक एक पल काटती हूं बेसब्री से
जानती हूं जब रुकेगा डाकिया
मेरे द्वार पर
कहेगा नहीं कुछ
पर मुस्कुराएगा और देखेगा
बेताबी से खत खोलते हुए मुझे
इस बात से बेखबर कि....
कोई देख रहा
मैं पढने लगूँगी एक एक शब्द
जल्दी जल्दी.....
तुम क्या जानो
इंतजार के ये तीन दिन
मेरे लिए क्या हैं
वक्त जैसे बीतता ही नहीं
घडी की सुई भूल जाती है
आगे खिसकना....

चांद फिर निकलेगा
बादल भी होंगे
वह खेलेगा लुका छिपी के खेल फिर
करेगा अठखेलियां भी
अभी अपने हिस्से मीठी कसक भरा
इंतजार है....
और इंतजार का अपना
अलग आनन्द है.....

Sunday 29 April 2012

कौन हैं ये


कौन हैं ये
मेरे साथ साथ रहते हैं
भीड में रहूं या अकेली
हाथ थामकर चलते हैं
कैसी भी हो डगर
कोई भी हो सफर
आओ इनसे मुलाकात करवाऊं
इनकी बाबत कुछ तुम्हें भी बताऊं
  
यह मेरे बचपन का साथी है
जब भी चाहता है मन
बच्चों जैसे फुदकना
किलकारियां भरना
मेरे साथ रहता है
खेतों में गलियों में
धूल भरी पगडंडियों पर
हाथ थामे चलता है

यह मेरे उमंगों का साथी है
जब भी चाहता है मन
उडानें भरना
ऊंचे और ऊंचे ,
छू लेना आसमान
जाना क्षितिज के पार
करना चांद सितारों से बातें
यह हौसला बढाता है
मेरे साथ साथ रहता है

यह मेरे अरमानों का
चुलबुल मनचला साथी है
लेता रहता है वादे मुझसे
हर दिन ,हर पल
नया कोई…
कभी अहले सुबह जगाने का
कभी रात लोरियां गाने का

बारिश की बूंदें हों
या इन्द्रधनुष का रंगीन नजारा
साथ साथ रहता है
यह जो मेरे अंतर्मन में उठते
हिलोरों को पढता है

किसी ने सिखाया मुझको
प्रभाती के मधुर बोल
किसी ने संझा गाकर सुनाया है
कोई भाता है मन को मेरे
किसी ने सही राह दिखलाया है
किसी से सीखा मैंने
स्नेह प्रेम की भाषा
और किसी ने दिया मुझे
हर पल जीने की अभिलाषा
 
ये तन्हाईयों के साथी हैं
कभी मायूस नहीं होने देते
कभी थपक देते हैं गालों को
कभी बालों में उंगलियां फिरा देते हैं…
इतनी बडी दुनिया में
मैं कभी अकेली नहीं होती
ये सारे के सारे मेरे बेहद अपने हैं
कह दूं कि कौन हैं –
ये--मेरे सात रंग के सपने हैं॥



दूर कहीं से


दूर कहीं से आवाज आई
लगा तुमने पुकारा हो
आवाज हू-ब-हू
तुम्हारी लगी…
मेरे पांव थरथराए
पर उठ न पाए
आत्मा देह से निकली
और दौड पडी…

शाम का वक्त
घर को लौटते
तुमने बायां हाथ
बगल की खाली पडी
सीट पर रखा है…
मैं देह बनी महसूस रही हूं
छुअन तुम्हारी
कसकर थाम लिया है
हाथ तुम्हारा
छूट न जाए कहीं…

तुमने कहा था
ऐसे ही करते हो सफर
परेशानी नहीं होती तुम्हें
चाहे कितनी भी भीड भरी राह हो
एक हाथ से स्टेयरिंग संभालते
एक से थाम कर हाथ मेरा
यह भी कि
ऐसे कट जाता है सफर आसानी से…॥