Thursday 29 December 2011

फासला न कर


जिन्दगी
मुझसे इतना
फासला न कर
नई नई ही अभी यह पहचान है
आधी अधूरी सी अपनी दस्तान है
कहने को बहुत शेष है
सुनने को ढेर सी
चढ्नी दोस्ती को अभी परवान है
कातर मेरी पुकार को
यूं अनसुनी न कर
जिन्दगी मुझसे इतना
फासला न कर

माना कि तेरा हमसफर
कोई और है मगर
मंजिल हमारी एक है
और एक है डगर
ना ले सकें अगर हाथों में हाथ तो
सरे राह चल तो सकते हैं साथ साथ हम
जिस राह के कंटकों से
घायल हों कोई पांव
उस राह की पीडा में मुझे
जान के न डाल
ऐ जिन्दगी मुझसे
इतना फासला न कर
कि ढूंढता है मन तुम्हें
अब बातबात पर

यूं तो दरकिनार किए
चल रहे हैं हम
क्या गम है क्या खुशी है
सभी एक से समझ
इन्सान हैं अदना से मगर इस जहान के
मायूसियों के जाल में उलझ जाते हैं अक्सर
जिन्दगी मुझसे
इतना फासला न कर…।!!

Saturday 24 December 2011

कौन हूँ मैं


मैं जाता हुआ लम्हा नहीं
कि चाहूँ तो भी
तनिक ठहर न सकूं...
मैं बीत गया वक्त भी नहीं
कि लौट के कभी आ न सकूं..
   
मैं ओस की नन्हीं सी
वह बूंद  नहीं
जरा सी हवा लगते ही
जो उड़ जाऊँ
मैं वो नन्हा सा दीया भी नहीं
कि जमाने की आंधियों
से झट बुझ जाऊँ
    
मैं हवा हूँ कि
वो जो जब चलती है
हरेक बाग से होकर के
ही गुजरती है
छूती है हरेक डाल को
हर पत्ते को..
खुद भी खुशबू से भरी होती है
कभी बादल में छिपी बूंदों को
तो कभी बिजली की चमक
ले लेती है
कभी तूफां तो कभी शीतलहर,
कभी लू बनके
फिरा करती है
हर भावना जो मन में
जनम लेती है
हर कशिश ,जो दिल में
पनाह लेती है....
हर चाह जो पूरी हो
या अधूरी रहे
हर कामना जो
जन्नत का ख्वाब रखती है

मैं हूँ वही एक छांव
हरेक राही को ,
कड़ी धूप से जाते हुए
जो दुलारना चाहे
हरेक उस क्षण में जब
कोई मायूस रहे
छू के कंधों को सहारा
देना चाहे...
        

छलक जाए किसी की
आंखें भी अगर
अपने आंचल से सदा पोंछना चाहे
तन्हाईयों में कोई जब  
याद करे..
उड़के आ जाए तनिक भी
नहीं जो देर करे..
       
जिस नाम से चाहो
पुकार लो मुझे
माँ हूँ कि बहन हूँ
कि बेटी हूँ दुलारी.
हर ठौर हर समय रहूँगी पास तेरे
पहचान लो मैं हूँ
सखी तुम्हारी....


   

Friday 23 December 2011

यही माया है


अपलक देखती रहीं ,
वो मेरी निगाहें थीं…
म सी गई, वो धडकन थी
ठगी सी रह गई, वो मैं थी…
आहिस्ते कदम रखते
आने वाले तुम थे ……

देव स्वरूप सूरत तुम्हारी
आकाशवाणी की तरह
मद्धिम मीठी सुरीली
आवाज तुम्हारी…
बस गया रूप तुम्हारा
मन के दर्पण में
पहले भी कहती थी
कोई भटकन है जन्मों की
यूं ही नहीं बेचैन होती आत्मा
ढूंढती रही कालान्तर से
न जाने कहां कहां…
   
देखा भी नहीं था तुम्हें मैने
पर महसूसती थी
बंधन शाश्वत सा
पहचानता हो जैसे मन प्राण
एक दूसरे को कब से…
        
सोचती थी मिलोगे जब भी
रोक नहीं पाऊंगी स्वयं को
तोड ही डालूंगी बेडियां
जमाने की निगाहों की…
और बुझा लूंगी अखंड
प्यास अंतरात्मा की…
भर लूंगी आगोश में
तुम्हें तत्क्षण…
  
छू भी नहीं पाई
कि मलिन न हो जाए रूप
तुम्हारा  …
सौम्य तुम्हारी निगाहों की
तासीर थी ऐसी…
  
वो आत्मीय नजर
वो म्रृदुल वाणी
और मुस्कुराकर पूछना
पहचाना मुझको ?
देखा है पहले कभी ,कहीं ??
बोल नहीं फूटे मेरे
बस सिर हिलाकर कह दिया
नहीं तो…
और हंस दिये तुम
जैसे हंस रहा हो यह मायावी संसार
कि यही माया है ।

Thursday 22 December 2011

एक पल रुको


मैं           
बहती हुई नदी थी कभी
आज
ठहरी हुई एक झील हूँ
मुसाफिर !
एक पल रुको ,
ध्यान से देखो...
तब चंचल थी
चलती रहती थी
आठों पहर ,वर्ष भर...
पर्वतों पर
पठारों में...
मचलती ,कुलांचें भरती....
तट की सीमाओं को भी
कई बार लांघा मैंने ,
कभी सिकुड़ी कभी सिमटी
कभी विस्तार पाई..
लेकिन किसी भी हाल में
तनिक न घबराई...
कितने कितने खेतों को सींचा मैंने
हरियाली बोई
नहरों में बंटी...
जीवों की प्यास बुझाई
कह नहीं सकती
कितना प्यार पाया मैंने
जहां जहां भी गई...
     
छल छल करता
जल मेरा
कल कल करता
स्वर मेरा..
आह्लाद भरे दिन रैन मेरे..

अब थक गई काया मेरी
समेट लिया मैंने
अपने बाजुओं को
रोक लिया अपने विस्तार को
बांध लिया परिधि में
अपने आप को...
थाम लिया थिरकते पांव को
शोख ,चंचल आदतों को
रख लिया
यादों में सहेज कर
रूप मेरा अब हुआ
एक शांत कज्ज्ल झील का ,
संभ्रात सा..
खुश हूँ बहुत कि अब मेरा
चित्त मग्न है
कुछ इस तरह ,
कि अब मेरा कोई प्राप्य नहीं है
न किसी की साधना ही है.
जब तलक नदी थी
सदा  
समंदर को छू पाने की कामना
करती रही...

हर रात
जब आकाश में
चांद खिलता है
और करोड़ों चमचमाते
ग्रह .सितारे उग आते हैं
छवि उनकी जल में
निहारती हूँ
अंक में भर लेने का ही
सुख सदा पा लेती हूँ
उनके झिलमिलाते
रूप का रस
मदहोश होकर
पीती रहती हूँ..
 
हर सुबह कुमुदनी
जब कुनमुना कर
जागती है
चूम कर उसकी
कोमल पंखुड़ियों को
खुश हो जाती हूं
  
और जल में सूर्य की
परछाईं को ही देखकर
जब कमल अपना सर्वस्व
झरा देता है
प्रेम की अद्भुत रवानी
मैं ही तो महसूसती हूँ..
  
खूबसूरत छोटी छोटी
नौकाएं ,
जलकुंभियां ,
तिरती तैरती मछलियां
और क्या क्या कहूं
मन का सुख
शब्दों में कैसे बयां करूं..
मुसाफिर !
चले मत जाओ
रुको ,
एक पल रुको ....
रुको ना…!!    






कौन मानेगा


क्यों नहीं खोली थी मैंने
खिडकियां
क्यों नहीं सुन पाई
उसकी आहटें
क्यों भरी थी नींद
मेरी आंख में
क्यों बदलती रह गई
मैं करवटें…

ठीक अपने वक्त पर
वो आई होगी
सांकलें भी उसने
खटकाई होगी
चिलमनों को जब
उसने हटाया होगा
खुशबू का झोंका
जरूर आया होगा…
   
भरमा गए होंगे
मेरे सुख स्वप्न भी
सोचा न था ऐसा
करूंगी मैं कभी
लौटकर न जाए
ऐसे कोई भी,
जाते जाते खिला गई
कलियां सभी…
 
यूं लगा जैसे
कोई दुलरा गया
और तभी से आंख
मेरी शरमाई है
कौन मानेगा मेरी
इस बात को
कोई नहीं वह
भोर की पुरवाई है…॥

ऐ मन ले चल मुझको


ऐ मन ले चल मुझको
ऐसी जगह ,
कोई जानता न हो
हमें पहचानता न हो..
न पूछे हाल ही कोई
न हो बेहाल मिलकर ही...
न गलियां हो परिचित सी
न बगीचे बाग ही कोई
न कोना कोई हो ऐसा
लगे जो अपना अपना सा

न अपने ही वहां कोई
पराए भी न हों कोई
गले लग जाए जो बढकर
ऐसा भी न हो कोई
तपिश न धूप की ही हो
मिले जो गर्म जोशी से
न छाया ही करे हमसे
कुछ मीठी मीठी बात

न धूल राहों की
लगे कुछ सोंधी सोंधी सी
न बूँदें बारिश की
लगें बिल्कुल सगी जैसी
हवा में भी घुली हो
महक अपनों सरीखी ही
न पेड़ों और लताओं की
छुवन ही मृदुल सी हो

न बोले स्नेह से कोई
न थामे हाथ ही कोई
लिपट के चूमने वाला
वहां न शख्स हो कोई...

जताए प्यार न कोई
न कोई हंस के ही बोले
न कोई राह ही रोके
पुकारे मुडके न कोई…


ले चल मुझे ऐ मन
यहां अब जी नहीं लगता.......






आने दो


कुहरे घनेरे
घेरे ह्र्दय को
खोल दो खिडकियां
आने दो ,थोडी सी धूप आने दो…

दिल डूबा डूबा
भींगी भींगी पलकें
छेड दो ,रागिनियां
पाने दो ,थोडा सा सुख पाने दो…

स्वपनों की भाषा
आंखों से बेहतर कौन जाने …?
हाल ह्र्दय का
तुम से भी बढकर कौन जाने…?

चाहे बताऊं ,चाहे छुपाऊं
जान ही लोगे, जानती हूं
मिलते ही आंखे कर लेंगी बातें
सारी की सारी, जानती हूं

मन है अकेला
बेहद अकेला ,
आने दो,पास आने दो
थोडा पास आने दो…
आने दो ना…!!

Monday 19 December 2011

मैं तैयार हूं


बंद थीं आंखें मेरी
दूर बहुत दूर
एक नन्हा सा उजाला उभरा
धीरे धीरे धीरे धीरे
आने लगा करीब…
देखती क्या हूं
वह बिन्दु फैलता जा रहा
पूरी परिधि विस्तार पा रही उसकी
रौशनी आहिस्ता-आहिस्ता
तीव्र होती जा रही…

ज्यों-ज्यों नजदीक आता जा रहा
वह प्रकाश पुंज
एक अजीब सुकून का एहसास
भरता जा रहा ज़ेहन में
देह जैसे हल्की-फ़ुल्की होकर
हवा में उठ जाने को
बेताब हो रही…
शांति, अद्भुत शांति…
कोई वेदना नहीं
कोई चिन्ता भी नहीं
किसी का कोई ख्याल नहीं
दिल दिमाग खाली-खाली
माया सो रही थी शायद;
शनै: शनै: उसकी नींद खुली
मुमकिन है उसने चौंक कर देखा हो
अपनी पकड यों ही कैसे ढीली होने देगी
जकडेगी, भरपूर प्रयास करेगी
जकडने का…
और उसने किया भी……

अचानक मुझे याद आया
मैं हवा नहीं ,
शून्य नहीं ,
मैं उजाला भी नहीं
मैं तो एक शरीर हूं
खूबसूरत स्वस्थ शरीर…
इस धरती पर रहने वाली
चहुं ओर से भरी-भरी
घर-परिवार नाते-रिश्तों से घिरी
जन-परिजन ,
अनगिनत मोह बंधन
और यह लपककर आता हुआ उजाला
और कोई नहीं मेरा मुक्ति पथ है
शायद पूरी हो गई मियाद मेरी
अब चलने की बारी है

मैं घबरा उठी
पसीने की बूंदें तडक आईं
दिल धडकने लगा जोर-जोर से
मैंने मुडकर
अपने परिवार की ओर देखा
परिवार……
यानि पति, पुत्र, पुत्री
भाई-भतीजे……
एक एक कर पुकारने लगी सबको
मैं जा रही हूं
देखो, मैं जा रही हूं
अभी के अभी जा रही हूं
कोई चलो मेरे साथ
कोई तो चलो मेरे साथ
   
पति ने कहा—
जब देखो किताबों में डूबी रहती है
नींद में भी बड-बड कर रही
मुंह फ़ेर लिया
मन पूछता है
यही हैं न !
जन्म-जन्मांतर का बंधन है जिनके साथ…?

पुत्र बोला---
मां, सोने दो न !
रात देर तक पढाई करता रहा
दोस्तों ने भी तंग किया रात भर
अभी-अभी तो सोया हूं
नींद पूरी न हो तो
दिन भर मन चिड-चिड करेगा
जानती हो न ?
आंसू भर आए आंखों में
मन फिर पूछता है
यही है न लाडला ??
प्यार किए बगैर सोने नहीं जाता
मम्मा मम्मा रटता रहता है…

पुत्री बोली---
क्या हुआ मां !
सर दर्द हो रहा क्या ?
दबा दूं ?
कितना काम करती रहती हो
अपना तनिक भी ख्याल नहीं रखती
दवा भी समय पर नहीं लेती
एक कप गर्म चाय पी लो
तुरंत आराम मिलेगा
पर मुझे थोडा और सोने दो
सोने दो न प्लीज !!
यह मेरी बेटी है
कलेजे का टुकडा
जब से जन्मी
हृदय से लगाए फिरती रही
इसका चेहरा जरा भी मलीन हुआ नहीं
कि मेरा दिल बैठने लगता
दो बूंद आंसू ढुलक आए गालों पर…
    
अब किससे कहूं
कौन चलेगा साथ मेरे ?
और कोई क्यों चलेगा ??
सब की अपनी-अपनी यात्रा है
जीवन यात्रा…
सब को अपने-अपने हिस्से के सुख दुख
भोगने हैं
जितनी सांसे जिसको मिली हैं
उससे कम कोई कैसे ले सकता है ???
    
मेरा तो अब काम ही क्या
याद करने की कोशिश करती हूं
कोई गांठ तो नहीं मन में
कोई बोझ तो नहीं चेतन अचेतन पर ??
हो पाउंग़ी न मुक्त पूरी तरह
खूब जोर देती हूं
दिमाग पर
कभी किसी का दिल दुखाया हो
या आहत किया हो कलेजा किसी का
जाने अनजाने
किया भी होगा
तो याद नहीं आ रहा
कौन याद रखता है
अपनी गलतियों को
अपने किये बुरे व्यवहार को

याद करती हूं
किसी का कर्ज तो नहीं माथे पर ?
पिता को दिया वचन
कि निबाहूंगी नाते रिश्तों की मर्यादा
करूंगी मदद सबकी यथासंभव
निभाया तो है न मैंने सामर्थ्य भर ?
गुरु को दिया वचन
कि झूठ नहीं बोलूंगी
करूंगी सेवा दीन दुखियों की…

मन घबराने लगता है
कहां किया कुछ भी
कुछ भी तो नहीं किया अभी
न माता-पिता की सेवा की
न भाई-बंधुओं के मान-सम्मान का
कर्ज अदा कर पाई
न दोस्तों को दिया वचन निभा पाई
जिन्होंने समय-असमय
नि:स्वार्थ मदद की मेरी
खडे रहे एक पांव पर
मेरे पुकारने से पहले ही
आ जाने को तत्पर
न संतान के दायित्वों से ही
मुक्त हो पाई अभी
और तो और
जिसे वचन दिया
कि साथ निभाउंगी उम्रभर
उसे भी तो छोड कर जा रही
कया करूं
कैसे जाऊं?
माया ठगनी पांव की बेडियां खोले
तब न जाऊं
और भी कसके जकडती जा रही

कल्पना करती हूं
आंसुओं के सैलाब की
जो बहेंगे बच्चों के नयनों से
कुम्हला जाएंगे वे एक-ब-एक
क्या करूं
कुछ समझ में नहीं आता
उजाला तीव्रतर होता जा रहा
आंखें अब चुंधियाने लगीं
क्या बोलूं
घबरा रही हूं
समय कम है
क्या कहूं इस रौशनी से
कह दूं कि ले चलो
या कहूं कि रहने दो
अभी कुछ दिन और
भटकने दो इन्हीं माया जालों में
अभी कुछ दिन और
पूरा कर लेने दो कुछ सपने
कर लेने दो सारे अधूरे
काम पूरे
पर कितने दिन…?
कितने दिनों में हो जाएगा
मेरा सब काम पूरा
कितने समय में कर लूंगी
सारे हिसाब-किताब बराबर
कितने दिनों की मांगूं मोहलत ???
नहीं सोच पा रही
नहीं बता पा रही
   
तो फिर---
छोड क्यों न दूं अपने आप को
उस परम सत्ता के हवाले
जिसने रचा मुझे
क्या काम लेने थे उसे मुझसे
वह जाने
क्या क्या ले पाया मुझसे
यह भी वह जाने
मैं क्यों करूं चिन्ता ?
मैं क्यों होऊं परेशान ?
मैं तो महज एक कठपुतली थी
जैसा उसने नचाया
नाचती रही
जन्म से अब तक
कभी हंसाया कभी रुलाया
वह करता रहा वह सब
जो जो उसके जी में आया

एक झटके में तोड डालती हूं
सारे विवाद की डोर ही
मोह माया के जाल से
मुक्त कर लेती हूं खुद को
दोनों हाथ उठा कर जोर से
पुकारती हूं………
ले चलो मुझे
ले चलो
मैं तैयार हूं
तेज रौशनी पडती है आंखों पर
और
खुल जाती है आंख मेरी  !!!